मध्य प्रदेश के सतना जिले के नागोद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जिसमें अमित सोनी नाम के एक डॉक्टर ने मरीज को ओपीडी में परामर्श के दौरान एक पर्चा जारी किया, लेकिन जब मरीज ने अस्पताल की फार्मेसी में पर्चा दिखाया, तो स्टाफ हैरान रह गया। पर्चा इतना खराब लिखा हुआ था कि उसे पढ़ना असंभव था और मरीज को जरूरी दवाइयां नहीं मिल पाईं।
उलझन यहीं खत्म नहीं हुई। मरीज़ ने अस्पताल के बाहर एक निजी मेडिकल स्टोर पर दवाई का पर्चा ले लिया, जहाँ उसे दवाई मिल गई, लेकिन फार्मेसी मालिक भी डॉक्टर की लिखावट को समझ नहीं पाया। अस्पष्ट लिपि से हैरान होकर, फार्मेसी मालिक ने पर्चा सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया, जो तेज़ी से वायरल हो गया।
सोशल मीडिया प्रतिक्रियाएं
इस पोस्ट पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं, कई स्थानीय लोगों ने दावा किया कि डॉ. अमित सोनी अपना निजी क्लिनिक चलाते हैं और अक्सर ऐसी दवाइयां लिखते हैं जो केवल निजी मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं, जिससे उन्हें कमीशन मिलता है। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि डॉक्टर जानबूझकर अपठनीय नुस्खे लिखते हैं ताकि मरीज़ों को खास दुकानों से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर किया जा सके।
एक स्थानीय निवासी ने टिप्पणी की, “ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। डॉक्टर अस्पष्ट नुस्खे लिखते हैं, इसलिए मरीज़ अस्पताल से दवाएँ नहीं ले पाते और उन्हें निजी दुकानों पर निर्भर रहना पड़ता है।”
स्वास्थ्य विभाग ने की कार्रवाई
इस घटना ने जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एलके तिवारी का ध्यान खींचा, जिन्होंने पुष्टि की कि मामले की जांच की जा रही है। तिवारी ने कहा, “हमें डॉ. अमित सोनी के पर्चे के बारे में शिकायत मिली है, जो समझ में नहीं आ रहा था और जिससे मरीज भ्रमित हो रहे थे। हमने डॉक्टर को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। उनका जवाब मिलने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।”
उन्होंने यह भी बताया कि डॉक्टर द्वारा निजी क्लिनिक चलाने और निजी लाभ के लिए निजी दुकानों से दवाइयां लिखने के आरोपों की अलग से जांच की जाएगी। स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को भरोसा दिलाया है कि जांच के आधार पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
यह घटना डॉक्टरों द्वारा निजी लाभ के लिए, अक्सर मरीजों के स्वास्थ्य और सुविधा की कीमत पर, विशिष्ट दवाएँ लिखने के बारे में चल रही चिंताओं को उजागर करती है। स्वास्थ्य विभाग की प्रतिक्रिया से इस मुद्दे पर स्पष्टता आने और यह सुनिश्चित होने की उम्मीद है कि मरीजों को बिना किसी अनावश्यक बाधा के सरकारी अस्पतालों में उचित चिकित्सा सेवा मिले।