भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के चौथे टेस्ट के दौरान एक बेहद विवादास्पद क्षण में, यशस्वी जयसवाल को एक ऐसे फैसले में बर्खास्त कर दिया गया, जिसने प्रशंसकों और विशेषज्ञों के बीच महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है।
इस विवादास्पद फैसले के लिए जिम्मेदार तीसरे अंपायर बांग्लादेश के शरफुद्दौला सैकत थे।
कौन हैं शर्फुद्दौला सैकत?
शरफुद्दौला सैकत ने 2022 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अंपायरों के एलीट पैनल में शामिल होने वाले पहले बांग्लादेशी अंपायर बनकर इतिहास रच दिया।
उनकी नियुक्ति बांग्लादेशी क्रिकेट के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश के अंपायरों की बढ़ती मान्यता को प्रदर्शित किया।
2006 में अपना करियर शुरू करने वाले सैकत के पास एक व्यापक अंपायरिंग पृष्ठभूमि है। तब से उन्होंने 10 टेस्ट, 63 वनडे और 44 टी20ई सहित सभी प्रारूपों में कई मैचों की देखरेख की है।
विवादास्पद बर्खास्तगी
यह घटना भारत की दूसरी पारी के दौरान घटी जब यशस्वी जयसवाल 84 रन पर बल्लेबाजी कर रहे थे।
उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई कप्तान पैट कमिंस की एक छोटी गेंद पर पुल शॉट खेलने का प्रयास किया, लेकिन गेंद को दस्तानों में दबाते दिखे, जिसे विकेटकीपर एलेक्स कैरी ने पकड़ लिया।
शुरुआत में, ऑन-फील्ड अंपायर जोएल विल्सन ने इसे नॉट आउट करार दिया। हालाँकि, ऑस्ट्रेलिया ने समीक्षा का विकल्प चुना, जिसके कारण सैकत को तीसरे अंपायर के रूप में शामिल किया गया।
स्निकोमीटर में बल्ले या दस्ताने के साथ संपर्क का संकेत देने वाला कोई स्पष्ट स्पाइक नहीं दिखने के बावजूद, सैकत ने विक्षेपण के दृश्य साक्ष्य के आधार पर जयसवाल को बाहर कर दिया।
इस निर्णय पर तत्काल प्रतिक्रिया हुई, क्योंकि कई लोगों का मानना था कि निर्णायक साक्ष्य के अभाव में बल्लेबाज को संदेह का लाभ देना जरूरी था।
अनिच्छा से मैदान छोड़ने से पहले जयसवाल ने स्वयं अंपायरों से भिड़कर अपनी निराशा व्यक्त की।
प्रतिक्रियाएँ और निहितार्थ
इस फैसले की प्रशंसकों और पूर्व खिलाड़ियों ने व्यापक आलोचना की है। विशेष रूप से, क्रिकेट के दिग्गज सुनील गावस्कर ने इसे “एक ऑप्टिकल भ्रम” के रूप में वर्णित किया, जो ऐसे महत्वपूर्ण निर्णयों में उपयोग की जाने वाली तकनीक की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
कई प्रशंसकों ने अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया, निर्णय को अनुचित बताया और मैच अधिकारियों से जवाबदेही की मांग की।
यह घटना न केवल अंपायरों द्वारा तुरंत निर्णय लेने में आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है, बल्कि क्रिकेट में वर्तमान तकनीक की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाती है।
निर्णायक ऑडियो संकेतों पर दृश्य साक्ष्य पर निर्भरता विशेष रूप से विवादास्पद रही है, जिससे इस बात पर चर्चा हुई है कि भविष्य के मैचों में निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।