ग्रामीण आवाज़ विशेष: रासायनिक खादों से सस्ता और बेहतर है वर्मीकम्पोस्ट; बनाने की विधि

ग्रामीण आवाज़ विशेष: रासायनिक खादों से सस्ता और बेहतर है वर्मीकम्पोस्ट; बनाने की विधि

रासायनिक खाद में अधिकतम तीन पोषक तत्व होते हैं, जबकि वर्मीकम्पोस्ट में पौधों के लिए 17 पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। इसमें पौधों के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्म पोषक तत्व सही अनुपात में होते हैं। ये सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों या फसलों द्वारा बहुत आसानी से अवशोषित कर लिए जाते हैं।

रासायनिक खादों के इस्तेमाल से खेत की मिट्टी और लोगों के स्वास्थ्य दोनों पर बुरा असर पड़ता है। वर्मीकम्पोस्ट इस समस्या का कारगर समाधान है और किसान बड़ी संख्या में इसे अपना रहे हैं। किसानों के अलावा बेरोजगार युवा भी बड़े पैमाने पर वर्मीकम्पोस्ट का व्यावसायिक उत्पादन करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसका कच्चा माल भी बिना किसी मेहनत के मिल जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा, नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. शिवधर मिश्रा ने ग्रामीण आवाज एग्रीटेक शो में वर्मीकम्पोस्ट तकनीक के बारे में बताया। आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके शो का यह एपिसोड देख सकते हैं।

डॉ. शिवधर मिश्रा ने बताया कि रासायनिक खादों पर हमारी खेती की निर्भरता ने मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर दिया है। मिट्टी में न केवल पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व खत्म हो गए हैं, बल्कि बड़ी मात्रा में अच्छे बैक्टीरिया और सूक्ष्म पोषक तत्व भी खत्म हो गए हैं। इसलिए, उपजाऊ मिट्टी और टिकाऊ खेती के लिए गोबर की खाद को बेहतर पोषण विकल्प माना जाता है। केंचुओं की मदद से गाय के गोबर से वर्मीकम्पोस्ट बनाया जाता है। इस विधि से खाद अपेक्षाकृत कम समय में तैयार हो जाती है और इसकी गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

डॉ. मिश्रा ने वर्मीकम्पोस्ट की तुलना रासायनिक खाद से करते हुए कहा कि रासायनिक खाद में अधिकतम तीन पोषक तत्व होते हैं, जबकि वर्मीकम्पोस्ट में पौधों के लिए 17 पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। वर्मीकम्पोस्ट में पौधों के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्म पोषक तत्व सही अनुपात में होते हैं। ये सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों या फसलों द्वारा बहुत आसानी से अवशोषित कर लिए जाते हैं।

वर्मीकम्पोस्टिंग की विधियाँ

डॉ. मिश्रा ने बताया कि वर्मीकम्पोस्ट बनाने की कई विधियां हैं। गड्ढे वाली विधि में केंचुओं को कम जगह मिलती है, इसलिए क्यारी (ढेर) विधि बेहतर मानी जाती है। खुले में वर्मीकम्पोस्ट बनाने पर नुकसान का खतरा रहता है। इसलिए एक खास ढांचा बनाना बेहतर होता है। जिनके पास ज्यादा संसाधन नहीं हैं, वे बड़े, छायादार पेड़ों के नीचे गोबर का ढेर लगाकर ढेर विधि से वर्मीकम्पोस्ट बना सकते हैं। डॉ. मिश्रा ने बताया कि किसान अपनी सुविधा के अनुसार ढांचे की लंबाई-चौड़ाई चुन सकते हैं। लेकिन ढेर की ऊंचाई डेढ़-दो फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, नहीं तो केंचुए गोबर को पूरी तरह नहीं खा पाएंगे। इस काम के लिए सबसे ज्यादा आइसेनिया फेटिडा प्रजाति केंचुआ का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि यह गोबर को तेजी से खाकर उसे वर्मीकम्पोस्ट में बदल देता है।

सावधानी आवश्यक

डॉ. मिश्रा के अनुसार वर्मीकम्पोस्ट तैयार करते समय यह सावधानी रखनी चाहिए कि गोबर के ढेर में कोई खट्टी चीज न जाए, न ही प्लास्टिक या कांच का कोई टुकड़ा। 15 दिन पुराना गोबर और फसल अवशेष गड्ढे या प्लेटफॉर्म पर डालकर उसमें केंचुए छोड़े जाते हैं। ये केंचुए गोबर खाते हैं और 1-1.5 महीने में वर्मीकम्पोस्ट तैयार हो जाता है। केंचुओं को गोबर के ढेर में छोड़ने के दो से तीन हफ्ते बाद चाय की टिकिया जैसी संरचना दिखने लगती है। इसे वर्मीकम्पोस्ट कहते हैं। इसे छानकर इस्तेमाल किया जा सकता है या वर्मीकम्पोस्ट के तौर पर बेचा जा सकता है।

डॉ. मिश्रा ने कहा कि किसानों को रासायनिक खाद के साथ-साथ वर्मीकम्पोस्ट का भी इस्तेमाल करना चाहिए और धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल कम करना चाहिए। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहेगी, बल्कि किसानों की उर्वरक लागत भी कम होगी। डॉ. मिश्रा के अनुसार, हमारे पौधों के लिए लाभदायक केंचुए उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण प्राकृतिक रूप से दुर्लभ हो गए हैं। इसलिए उन्हें अनुकूल वातावरण में पाला जाता है।

बिक्री के लिए प्रयोगशाला प्रमाण पत्र

डॉ. मिश्रा ने बताया कि वर्मीकम्पोस्ट भी उर्वरक नियंत्रण आदेश के अंतर्गत आ गया है। इसलिए, यदि आप इसका उत्पादन और बिक्री बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं, तो आपको उत्पाद की जांच करवाकर किसी अधिकृत प्रयोगशाला से प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। वर्मीकम्पोस्ट में सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार घटक होने चाहिए। डॉ. मिश्रा ने बताया कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इसके लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी दे रही हैं।

ग्रेटर नोएडा की महिला उद्यमी और जैविक किसान चंचल शांडिल्य, जिन्होंने वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करना शुरू किया है, ने रूरल वॉयस को बताया कि वे 4 फीट चौड़ी और 30 फीट लंबी क्यारियाँ बनाती हैं। वे हर फीट लंबाई के लिए एक किलोग्राम केंचुआ डालती हैं। इस प्रकार, उन्हें 30 किलोग्राम केंचुओं की आवश्यकता होती है। वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने में लगभग 45 दिन लगते हैं। केंचुओं की संख्या भी लगभग तीन गुनी हो जाती है और इन्हें या तो बेचा जा सकता है या दूसरे बेड में इस्तेमाल किया जा सकता है। चंचल अपने खेतों में वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करती हैं और बची हुई केंचुआ को 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचती हैं।

Exit mobile version