पुणे में ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ के उद्घाटन के मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मौजूदा मंदिर-मस्जिद विवाद पर टिप्पणी की. टिप्पणियों ने लोगों में दिलचस्पी जगाई है, ख़ासकर संभल, मथुरा और काशी में मस्जिदों की ऐतिहासिक स्थिति को लेकर बढ़ती बहस के संबंध में। भागवत ने ऐसे विवादास्पद मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सभी धर्मों के प्रति एकता और सम्मान की बात कही।
मंदिर-मस्जिद विवाद पर मोहन भागवत
भागवत ने अपने भाषण में कहा कि कुछ मस्जिदों की ऐतिहासिक पहचान को लेकर जो चर्चा चल रही है, उससे राष्ट्रीय सौहार्द्र नहीं बिगड़ना चाहिए. उन्होंने संभल, मथुरा और काशी जैसे शहरों में मस्जिदों को लेकर चल रहे विवादों का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे मुद्दों से लोगों को नहीं बांटना चाहिए. उन्होंने कहा कि हालांकि इस तरह के मामले देश के विभिन्न हिस्सों में उठाए जा रहे हैं, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम सभी को अपने मतभेदों के बावजूद सौहार्दपूर्ण ढंग से एक साथ रहना चाहिए।
भागवत के भाषण की मुख्य बातें
भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि हमें धार्मिक विवादों को “हमारे विचार सही हैं, और बाकी सभी गलत हैं” की मानसिकता के साथ नहीं देखना चाहिए। उन्होंने आपसी सम्मान पर जोर देते हुए कहा कि जहां हमें अपनी मान्यताओं का पालन करने का अधिकार है, वहीं दूसरों के विचारों का सम्मान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने आगे कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे विश्वासों के कारण दूसरों को कष्ट न हो और दूसरों की राय का सम्मान करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अपनी राय का सम्मान करना।”
अनेकता में एकता
इस संदर्भ में, आरएसएस प्रमुख ने लोगों से राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में बड़ी तस्वीर के बारे में सोचने को कहा। आस्था और भक्ति के मूल्य को स्वीकार करते हुए भी भागवत ने लोगों से शांति से रहने को कहा। उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि इस देश की ताकत विविधता का सम्मान करने की क्षमता में निहित है। उन्होंने लोगों से ऐसे संवेदनशील मुद्दों को संभालने में समझदारी बरतने और ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होने को कहा जो अनावश्यक संघर्ष का कारण बन सकती है।
‘हिंदू सेवा महोत्सव’ में मोहन भागवत का भाषण एकता, सभी धर्मों के प्रति सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आह्वान से भरा था। यह संदेश इस समय तब आया है जब धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद भारत के विभिन्न हिस्सों में तनाव का कारण बना हुआ है। आपसी सम्मान और राष्ट्रीय सद्भाव पर उनका जोर भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में संवेदनशील मुद्दों को संभालने के तरीके पर एक संतुलित दृष्टिकोण देता है।