भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के रूप में लोक अदालतों के महत्व पर प्रकाश डाला, उन्होंने कहा कि लोग अक्सर अदालती कार्यवाही से “इतने तंग” आ जाते हैं कि वे हमेशा किसी न किसी तरह के समझौते की तलाश में रहते हैं। लोक अदालतें ऐसी जगहें हैं जहाँ विवादों और लंबित अदालती मामलों, या मुकदमेबाजी से पहले के मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जाता है। पारस्परिक रूप से स्वीकृत समझौतों के खिलाफ अपील करने की कोई संभावना नहीं है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने चंद्रचूड़ के हवाले से कहा, “लोग इतना भरोसा हो जाते हैं कोर्ट के मामलों से वो कोई भी समझौता चाहते हैं… बस कोर्ट से दूर करा दीजिए। यह प्रक्रिया ही सजा है और यह हम सभी जजों के लिए चिंता का विषय है।”
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सीजेआई ने हर स्तर पर लोक अदालतों की स्थापना में बार और बेंच दोनों से महत्वपूर्ण सहयोग की सराहना की। उन्होंने बताया कि प्रत्येक लोक अदालत पैनल में दो न्यायाधीश और बार के दो सदस्य होते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि अधिवक्ताओं को संस्था पर स्वामित्व प्राप्त हो।
उन्होंने कहा, “ऐसा करने के पीछे उद्देश्य वकीलों को संस्था पर स्वामित्व देना था, क्योंकि यह ऐसी संस्था नहीं है जो केवल न्यायाधीशों द्वारा चलाई जाती है, और यह न्यायाधीशों की, न्यायाधीशों के लिए, न्यायाधीशों द्वारा संस्था नहीं है।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखते हैं। हमने वकीलों से सीखा कि छोटे-छोटे प्रक्रियात्मक मुद्दों पर उनकी कितनी पकड़ है।”
‘सुप्रीम कोर्ट पूरे देश की सेवा करता है’: सीजेआई चंद्रचूड़ ने समावेश पर जोर दिया
चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट भले ही दिल्ली में स्थित है, लेकिन यह पूरे देश की सेवा करता है। समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देने के लिए रजिस्ट्री में देश भर के अधिकारियों को शामिल करने का प्रयास किया गया है।
उन्होंने कहा कि विशेष लोक अदालत की शुरुआत सात बेंचों से हुई थी और इतने काम के कारण अब इसकी संख्या 13 हो गई है। इस पहल का उद्देश्य लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाना और उनके जीवन में न्यायपालिका की निरंतर उपस्थिति सुनिश्चित करना है।