इंडिया टीवी के प्रधान संपादक रजत शर्मा
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ की टिप्पणी कि “जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करने के मुद्दे पर पाकिस्तान और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन एकमत हैं” ने मौजूदा विधानसभा चुनावों में हलचल मचा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा, “कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के एजेंडे को लागू करना चाहते हैं, लेकिन दुनिया की कोई भी ताकत अनुच्छेद 370 को वापस नहीं ला सकती।”
कोई पूछ सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान-कांग्रेस कनेक्शन का मुद्दा क्यों उठाया। ऐसा नहीं है कि वह कश्मीर चुनाव में पाकिस्तान को महत्व देना चाहते हैं, बल्कि वह अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर कांग्रेस को बेनकाब करना चाहते हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को वापस लाने का वादा किया है, लेकिन कांग्रेस ने जानबूझकर इस मुद्दे का जिक्र करने से बचने की कोशिश की है। जम्मू-कश्मीर के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 की बहाली का कोई जिक्र नहीं है। कांग्रेस नेताओं के चुनावी भाषणों से यह मुद्दा गायब हो गया है।
याद रखें कि जब मोदी सरकार ने संसद में अनुच्छेद 370 को हटाया था, तब कांग्रेस ने उसका समर्थन किया था। लेकिन बुधवार को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कांग्रेस को इस बहस में शामिल कर लिया। इससे भाजपा नेताओं में कांग्रेस के खिलाफ़ तीखा हमला शुरू हो गया।
कांग्रेस के लिए यह एक दुविधा वाली स्थिति है। अगर वह अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन करती है, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ उसका गठबंधन निष्फल हो सकता है, और अगर वह इस अनुच्छेद को बहाल करने का समर्थन करती है, तो भाजपा यह कहकर कांग्रेस पर हमला करेगी कि वह पाकिस्तान समर्थक एजेंडे पर चल रही है।
यह एक तथ्य है कि 2019 में मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से कश्मीर घाटी की स्थिति में व्यापक बदलाव आया है। पीएम मोदी ने गुरुवार को श्रीनगर में एक रैली में कहा कि नेहरू, अब्दुल्ला और मुफ्ती के “तीन राजवंशों” ने राज्य में बर्बादी के अलावा कुछ नहीं लाया है, जबकि घाटी ने केंद्रीय शासन के तहत पिछले पांच वर्षों में मौलिक परिवर्तन देखा है।
बदलाव सभी के सामने है। सिनेमा हॉल फिर से खुल गए हैं, छात्र स्कूल और कॉलेज जा रहे हैं, दुकानें खूब चल रही हैं, पर्यटकों के लिए डल झील में शिकारे चल रहे हैं और लोग बिना किसी डर के ईद और अन्य त्यौहार मना रहे हैं।
अब न तो कर्फ्यू है, न पत्थरबाजी और न ही बार-बार हड़तालें। लोग अब खुले वातावरण में सांस ले रहे हैं और बंदूक का डर खत्म हो गया है। आम कश्मीरी इस बदलाव को स्वीकार करते हैं।
वे अनुच्छेद 370 के विवादास्पद मुद्दे पर चुप हैं, जबकि वे यह स्वीकार करते हैं कि इस अनुच्छेद के हटने से घाटी में शांति आई है। यह घाटी की जमीनी हकीकत है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आम लोगों को इस जमीनी हकीकत को स्वीकार करने में समय लगेगा, क्योंकि सोशल मीडिया बहुत सक्रिय है।
घाटी में लोगों को हर रोज़ उनके सेलफोन पर कम से कम 10 भड़काऊ संदेश मिल रहे हैं, जो उन्हें केंद्र और मोदी के बारे में गुमराह कर रहे हैं। इससे उबरने में समय लगेगा। समय ही सबसे अच्छी दवा है।
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