आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को आबकारी नीति मामले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने आप नेता को दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के दोनों मामलों में देरी से सुनवाई और लंबी कैद का हवाला देते हुए जमानत दे दी।
सिसोदिया करीब 18 महीने से जेल में बंद हैं। न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने 6 अगस्त को सिसोदिया की याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन निचली अदालत के इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया कि सिसोदिया भी मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार हैं। इस संबंध में आप नेता के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय की प्रतिकूल टिप्पणियों को भी शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया है।
अदालत ने उन्हें 10 लाख रुपये की जमानत राशि जमा करने पर रिहा करने का आदेश दिया। सिसोदिया को अपना पासपोर्ट जमा करना होगा और हर सोमवार को पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा और उनसे सबूतों से छेड़छाड़ न करने और गवाहों को प्रभावित न करने के लिए कहा गया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जमानत को सजा के तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। साथ ही, यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि निचली अदालतें और उच्च न्यायालय यह समझें कि जमानत नियम है और जेल अपवाद।
आदेश सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा, ‘स्वतंत्रता के मामले में हर दिन मायने रखता है।’ सिसोदिया शुक्रवार शाम या शनिवार सुबह (जैसे ही आदेश अपलोड होगा) जेल से बाहर आ जाएंगे।
आप नेता को अब रद्द हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित अनियमितताओं में उनकी कथित संलिप्तता के लिए 26 फरवरी, 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। अपनी गिरफ्तारी के तुरंत बाद, उन्होंने 28 फरवरी, 2023 को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। बाद में, ईडी ने उन्हें 9 मार्च, 2023 को सीबीआई की एफआईआर से उपजे मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया।
सिसोदिया ने जमानत की मांग करते हुए कहा था कि वह करीब 18 महीने से हिरासत में हैं और उनके खिलाफ मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है। ईडी और सीबीआई ने उनकी जमानत याचिकाओं का विरोध किया था। मामले में बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और ईडी से पूछा था कि वे इन मामलों में सुरंग का अंत कहां देखते हैं।