भारतीय सेब उद्योग की चमक फीकी, आयात में 33 प्रतिशत की वृद्धि

भारतीय सेब उद्योग की चमक फीकी, आयात में 33 प्रतिशत की वृद्धि

भारत मुख्य रूप से ईरान, तुर्की, इटली, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका से सेब आयात करता है। हाल के वर्षों में इन देशों से आयात में काफी वृद्धि देखी गई है।

आयातित सेबों की आमद के कारण भारतीय सेब उद्योग गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। उद्योग में लगातार गिरावट आ रही है, जैसा कि 2023-24 के दौरान सेब के आयात में 33.98 प्रतिशत की वृद्धि से पता चलता है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के अनुसार, भारत ने 2023-24 में 5.1 लाख टन सेब का आयात किया, जो 2022-23 में 3.7 लाख टन से अधिक है।

आयातित सेब के प्रमुख स्रोत
भारत मुख्य रूप से ईरान, तुर्की, इटली, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका से सेब आयात करता है। हाल के वर्षों में इन देशों से आयात में काफी वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, ईरान से सेब का आयात 2023-24 में 1.37 लाख टन तक पहुंच गया, जो 2022-23 में 80,346 टन से 71.77 प्रतिशत अधिक है। इसी तरह, तुर्की से आयात 9 प्रतिशत बढ़कर 2023-24 में 1.17 लाख टन हो गया, जबकि 2022-23 में यह 1.07 लाख टन था।

अफ़गानिस्तान से सेब के आयात में उछाल
अफ़गानिस्तान से सेब के आयात में 2400 प्रतिशत की नाटकीय वृद्धि हुई है। 2022-23 में, भारत ने अफ़गानिस्तान से 1,508 टन सेब आयात किया, जो 2023-24 में बढ़कर 37,837 टन हो गया। इसके अलावा, पोलैंड से सेब का आयात 2023-24 में 33,409 टन रहा, जो 2022-23 में 26,323 टन था। दक्षिण अफ़्रीका से आयात 2022-23 में 19,256 टन से बढ़कर 2023-24 में 27,738 टन हो गया, जबकि अमेरिका से आयात 2022-23 में 4,486 टन से बढ़कर 2023-24 में 20,540 टन हो गया।

भारतीय बाज़ार पर विदेशी सेबों का प्रभाव
वर्तमान में भारत में आयातित सेबों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगता है, जो जून 2023 में 75 प्रतिशत था। अब इस शुल्क को बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने की मांग की जा रही है। हिमाचल प्रदेश फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने रूरल वॉयस को बताया कि विदेशी सेब भारतीय सेबों की तुलना में सस्ते हैं, जिससे मांग कम हो रही है और घरेलू सेबों की कीमतें कम हो रही हैं। बागवान लंबे समय से 100 प्रतिशत आयात शुल्क की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांगें अभी तक पूरी नहीं हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के हजारों बागवानों को काफी नुकसान हो रहा है।

चौहान ने बताया कि कई बागवान सीजन के बाद अपने सेब कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं, ताकि बाद में उन्हें ऊंचे दामों पर बेच सकें। हालांकि, सस्ते विदेशी सेबों की उपलब्धता उन्हें लाभदायक बिक्री हासिल करने से रोकती है, जिससे उनके पास पिछले साल का बिना बिका हुआ स्टॉक रह जाता है। इस स्थिति ने हिमाचल और जम्मू-कश्मीर से नए सेबों की मांग में कमी की है। इसके अलावा, इस साल कम बारिश और फफूंद जनित बीमारियों ने हिमाचल में सेब उत्पादन को प्रभावित किया है, जिससे बागवानों के सामने चुनौतियां और बढ़ गई हैं। अगर ये हालात बने रहे, तो सेब की मांग में गिरावट जारी रह सकती है, जिससे बागवानों को और अधिक वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है।

Exit mobile version