छोटी आसवन इकाइयाँ सुगंधित पौधों के किसानों को कैसे लाभ पहुँचाती हैं

छोटी आसवन इकाइयाँ सुगंधित पौधों के किसानों को कैसे लाभ पहुँचाती हैं

500 किलोग्राम टैंक क्षमता वाली छोटी आसवन इकाई की लागत लगभग 2.5 लाख रुपये है, जबकि 1000 किलोग्राम टैंक क्षमता वाली इकाई लगभग 4.5 लाख रुपये में उपलब्ध है। इसकी स्थापना के लिए 10 वर्ग मीटर का क्षेत्र पर्याप्त है।

लोग अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और बेहतर स्वास्थ्य के लिए सुगंधित और औषधीय पौधों की ओर रुख कर रहे हैं। इन पौधों से तेल निकालने वाली आसवन इकाइयाँ आम तौर पर बहुत बड़ी और महंगी होती हैं। इन्हें स्थापित करना आम किसान के लिए संभव नहीं है।

आम किसान के लिए आसवन इकाई लगाना संभव बनाने के लिए कम लागत वाली छोटी आसवन इकाई विकसित की गई है। छोटी आसवन इकाई कैसे काम करती है, इसकी लागत कितनी है, आसवन कैसे होता है, छोटी इकाई से किसानों को क्या लाभ होता है आदि विषयों पर रूरल वॉयस एग्रीटेक शो का यह नया एपिसोड बनाया गया है। इसका वीडियो वेबसाइट पर उपलब्ध है। इस एपिसोड में लखनऊ के केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार छोटी आसवन इकाई के बारे में जानकारी साझा करते हैं। शो देखने के लिए आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

डॉ. संजय कुमार के अनुसार, इन दिनों आयुर्वेदिक दवाओं और सुगंधित पौधों से बने उत्पादों की मांग बढ़ गई है। कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों का शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इन पौधों की ओर रुझान बढ़ा है। वे कहते हैं, “इसलिए हम किसानों को पारंपरिक खेती के साथ-साथ सुगंधित पौधों की खेती करने की सलाह दे रहे हैं, ताकि उनकी आय बढ़े।” वे कहते हैं कि भारत में हजारों पौधे हैं, जिनका औषधीय उपयोग होता है। इनसे बने उत्पादों और दवाओं की देश-विदेश में भारी मांग है।

डॉ. कुमार कहते हैं कि इन पौधों से निकाले गए तेल का इस्तेमाल कंपनियां एरोमाथेरेपी के अलावा कई तरह के सुगंधित तेल, साबुन और क्रीम बनाने में करती हैं। मेंथा, तुलसी, सिट्रोनेला, लेमनग्रास और पामारोसा समेत कई ऐसे पौधे हैं, जिनसे किसान तेल निकालकर कंपनियों को बेच सकते हैं। इसके लिए डिस्टिलेशन यूनिट की जरूरत होती है। छोटे किसानों की इसी जरूरत को पूरा करने के लिए कम लागत वाली छोटी डिस्टिलेशन यूनिट विकसित की गई हैं।

डॉ. कुमार ने बताया कि आसवन इकाई दो तरह की होती है। एक सीधे आग पर आधारित और दूसरी बॉयलर पर आधारित। छोटी आसवन इकाइयाँ ज़्यादातर आग पर आधारित होती हैं। इसके तीन घटक होते हैं – भट्ठी, टैंक और कंडेनसर। टैंक भट्ठी पर लगा होता है। प्लांट काटकर टैंक में भर दिए जाते हैं। भट्ठी की गर्मी प्लांट को वाष्पित कर देती है और भाप कंडेनसर में चली जाती है। कंडेनसर में ठंडा होने पर तेल और पानी का मिश्रण प्राप्त होता है, जिसमें तेल बाद वाले के ऊपर तैरता रहता है। अंत में, तेल को पानी से अलग करने के लिए एक विभाजक का उपयोग किया जाता है।

डॉ. कुमार कहते हैं कि 500 ​​किलो टैंक क्षमता वाली छोटी डिस्टिलेशन यूनिट की लागत करीब 2.5 लाख रुपये आती है, जबकि 1000 किलो टैंक क्षमता वाली यूनिट करीब 4.5 लाख रुपये में उपलब्ध है। इसे लगाने के लिए 10 वर्ग मीटर का क्षेत्र पर्याप्त है।

सिट्रोनेला तेल का इस्तेमाल परफ्यूम, मच्छर भगाने वाले तेल, रूम फ्रेशनर और सैनिटाइजर बनाने के साथ ही हर्बल थेरेपी में भी किया जाता है। बाजार में इसकी कीमत 700-800 रुपये है। लेमनग्रास तेल की कीमत बाजार में 1,200-1,300 रुपये प्रति लीटर है। पामारोसा तेल का इस्तेमाल गुलाब जल, परफ्यूम और साबुन बनाने में किया जाता है। बाजार में इसकी कीमत 2,000-2,200 रुपये प्रति लीटर है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में उगाए गए इन पौधों से करीब 100-120 लीटर तेल प्राप्त किया जा सकता है। डॉ. कुमार कहते हैं, “सरकार भी सुगंधित खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हरसंभव मदद कर रही है।”

लखनऊ के पास रहने वाले और चड्ढा अरोमा फार्म चलाने वाले समीर चड्ढा रूरल वॉयस एग्रीटेक शो में बताते हैं कि उनके पास 1000 किलो की डिस्टिलेशन यूनिट है। वे कहते हैं, “सुगंधित और औषधीय पौधों से तेल की मांग को देखते हुए मैंने लखनऊ के सीमैप से प्रशिक्षण लिया और इनकी खेती शुरू की।” इसके बाद उन्होंने ये डिस्टिलेशन यूनिट लगाईं। वे मेंथा, तुलसी, सिट्रोनेला, लेमनग्रास, पामारोसा और हल्दी का तेल निकालते हैं।

समीर के अनुसार, तेल निकालना लाभदायक है। वे कहते हैं कि सूखी लेमनग्रास 30 रुपये प्रति किलोग्राम बिकती है, जबकि लेमनग्रास तेल 1,200 रुपये प्रति लीटर बिकता है। इस प्रकार, आसवन इकाइयाँ किसानों को अपना मुनाफ़ा बढ़ाने में मदद करती हैं।

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