ग्रामीण आवाज़ विशेष: एकीकृत भेड़ पालन शुष्क क्षेत्रों में आय बढ़ाने का अच्छा साधन

ग्रामीण आवाज़ विशेष: एकीकृत भेड़ पालन शुष्क क्षेत्रों में आय बढ़ाने का अच्छा साधन

डॉ. तोमर ने बताया कि आमतौर पर शुष्क क्षेत्रों में एक एकड़ फसल के साथ 25-30 भेड़ें पाली जा सकती हैं। इनमें से एक नर होना चाहिए। इससे किसान को सालाना 1-1.5 लाख रुपए की आय हो सकती है। यह आय भेड़ों से उनकी ऊन, दूध, मांस, गोबर और मेमने से प्राप्त की जा सकती है।

एकीकृत खेती एक ऐसी तकनीक है, जिससे न सिर्फ फसल की पैदावार बढ़ती है, बल्कि किसानों को साल भर रोजगार भी मिलता है। इससे किसानों को बागवानी, बकरी पालन, डेयरी फार्मिंग, भेड़ पालन आदि कई तरह की आय के साधन मिलते हैं। इनसे किसानों की उत्पादकता बढ़ती है और संसाधनों के समुचित उपयोग से खेती से जुड़ी गतिविधियों की लागत भी कम होती है। शुष्क क्षेत्रों में निम्न श्रेणी की मिट्टी, अनियमित वर्षा और सूखे जैसी स्थिति के कारण उत्पादकता कम होती है। ऐसे में अगर इन क्षेत्रों के किसान फसल उगाने के साथ भेड़ पालन भी करें, तो एकीकृत खेती से बेहतर मुनाफा मिल सकता है। केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान (सीएसडब्ल्यूआरआई), अविकानगर (राजस्थान) के निदेशक डॉ. अरुण कुमार तोमर ने रूरल वॉयस एग्रीटेक शो में एकीकृत भेड़ पालन के बारे में बताया। आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके शो का यह एपिसोड देख सकते हैं।

डॉ. तोमर ने कहा कि केवल फसलें ही शुष्क क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकतीं। इसलिए, कृषि वानिकी और फसलें तथा चारा उगाने के साथ-साथ भेड़ पालन भी एक अच्छा विकल्प है। कृषि वानिकी शुष्क भूमि को रेगिस्तान बनने से रोकती है। चूंकि इससे भेड़ों के लिए चारा आसानी से उपलब्ध हो जाता है, इसलिए कृषि वानिकी और भेड़ पालन साथ-साथ चल सकते हैं। अगर औषधीय पौधों और डेयरी फार्मिंग को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो और भी बेहतर है।

डॉ. तोमर ने बताया कि आमतौर पर शुष्क क्षेत्रों में एक एकड़ फसल के साथ 25-30 भेड़ें पाली जा सकती हैं। इनमें से एक नर होना चाहिए। इससे किसान को सालाना 1-1.5 लाख रुपए की आय हो सकती है। यह आय भेड़ों से प्राप्त की जा सकती है, जो ऊन, दूध, मांस, गोबर और मेमने से प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, अगर खराब मौसम के कारण फसलें खराब हो जाती हैं, तो भी भेड़ें आय का स्रोत बनती हैं। डॉ. तोमर ने बताया कि शुष्क क्षेत्रों में भेड़ पालन किसानों के लिए एटीएम की तरह है।

डॉ. तोमर ने बताया कि एकीकृत भेड़ पालन में भेड़ों के चारे पर बहुत कम खर्च आता है। एक तो यह कि चारा बोई गई फसल के अवशेषों से प्राप्त किया जा सकता है। दूसरा, कृषि वानिकी भी चारे के स्रोत के रूप में काम आती है।

डॉ. तोमर ने बताया कि दक्षिण के राज्यों में एकीकृत भेड़ पालन तेजी से बढ़ रहा है। नाबार्ड भेड़ पालन के लिए ऋण और सहायता दे रहा है। “और हमारा संस्थान किसानों को भेड़ पालन का प्रशिक्षण भी देता है।”

जयपुर के खैराना गांव के प्रगतिशील किसान सुरेंद्र अवाना ने बताया कि वे पांच साल से एकीकृत खेती कर रहे हैं। डेढ़ साल पहले उन्होंने इसमें भेड़ पालन को भी शामिल किया। उन्होंने बताया कि सीएसडब्ल्यूआरआई, अविकानगर से इसकी जानकारी लेकर उन्होंने पांच भेड़, पांच मेमनों और एक नर भेड़ से शुरुआत की। आज उनके पास 31 भेड़ें हैं। भेड़ों से मिलने वाले गोबर से उनके खेतों की उर्वरता बढ़ी है। अवाना ने बताया, “भेड़ों को खिलाने में बहुत कम खर्च आता है, क्योंकि खेत में उगी फसल के अवशेषों से ही चारे का प्रबंध हो जाता है। भेड़ों का दूध, मेमनों, ऊन और गोबर बेचकर मैं मुनाफा कमा रहा हूं।”

Exit mobile version