जमानत पर रिहा होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे की घोषणा की। उन्होंने कहा कि उनका इस्तीफा उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण है। अपने संबोधन के दौरान केजरीवाल ने साफ कर दिया कि मनीष सिसोदिया मुख्यमंत्री की भूमिका की जगह नहीं लेंगे। उनके इस ऐलान के बाद दिल्ली में राजनीतिक पारा काफी चढ़ गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि केजरीवाल ने आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव का एजेंडा तय कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे ने टिप्पणी की कि पहले जहां यह माना जाता था कि आप को सिर्फ दो लोग चला रहे हैं, वहीं केजरीवाल का यह असाधारण कदम मुख्यमंत्री पद के लिए दिल्ली की राजनीति के नए दृष्टिकोण का संकेत देता है। पूर्व संपादक रामकृपाल सिंह ने टिप्पणी की कि केजरीवाल ईमानदारी की मिसाल पेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि परिस्थितियों और उनसे उभरने के तरीके को देखते हुए उन्होंने इस संकट में एक अवसर तलाश लिया है। अगले साल फरवरी में होने वाले चुनावों के साथ केजरीवाल ने पहले ही चुनावी एजेंडा तय कर दिया है। वह समझते हैं कि चुनाव से पहले फैसला नहीं आएगा और अगर पार्टी जीतती है तो वह मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार होंगे। अपने संबोधन में केजरीवाल ने घोषणा की कि वे दो दिन में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे और जब तक जनता अपना फैसला नहीं सुना देती, तब तक वे पद पर नहीं बैठेंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे फैसला आने तक हर घर और गली में जाएंगे। केजरीवाल ने भाजपा पर भी निशाना साधा और उन पर एक नई रणनीति अपनाने का आरोप लगाया, जिसके तहत वे विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ झूठे मामले बनाते हैं, जो चुनाव हार गए हैं, जिसके कारण उनकी गिरफ्तारी हुई है और उनकी सरकारें गिर गई हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि भाजपा ने सिद्धारमैया, पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी जैसे नेताओं को इसी तरह निशाना बनाया है, यह दर्शाता है कि पार्टी विपक्षी नेताओं के खिलाफ नियमित रूप से इस तरह की रणनीति का इस्तेमाल करती है।