आत्मनिर्भरता की चर्चा के बीच ब्राजील, अर्जेंटीना से दालों का आयात

आत्मनिर्भरता की चर्चा के बीच ब्राजील, अर्जेंटीना से दालों का आयात

दालों के आयात के लिए सरकार ने अरहर, उड़द और मसूर पर आयात शुल्क 31 मार्च 2025 तक माफ कर दिया है। हाल ही में सरकार ने चना के विकल्प के रूप में इस्तेमाल होने वाली पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को दो महीने बढ़ाकर 30 जून 2024 तक कर दिया है।

एक तरफ देश के किसानों को दालों का सही दाम न मिलने से दालों का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों से लंबी अवधि के सौदे करके दालों का आयात किया जाएगा। ब्राजील से 20,000 टन से अधिक उड़द का आयात होने की उम्मीद है, जबकि अर्जेंटीना से अरहर का आयात किया जाएगा।

चुनावी साल में दालों की महंगाई पर काबू पाना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। मार्च में दालों की खुदरा महंगाई दर 17 फीसदी से ज्यादा रही है जबकि फरवरी में यह 19 फीसदी के करीब थी। ऐसे में दालों की कमी को दूर करने के लिए इसे विदेशों से आयात करना पड़ रहा है। लेकिन मूल सवाल यह है कि दालों का उत्पादन क्यों नहीं बढ़ रहा है और दालों के आयात की जरूरत क्यों पड़ रही है?

मध्य प्रदेश के किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं कि सरकार एमएसपी की गारंटी देने के बजाय दालों के आयात की गारंटी दे रही है जबकि किसान अपनी उपज के सही दाम से वंचित रह जाता है। इस साल चने के दाम पिछले साल से काफी कम हैं। लेकिन 2025 तक आयात शुल्क में छूट देकर दालों के आयात को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह न केवल किसानों के लिए बल्कि देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के लिए भी प्रतिकूल है।

केंद्र सरकार कई देशों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध करके दालों की आपूर्ति में स्थिरता लाना चाहती है। इससे पहले मोजाम्बिक, तंजानिया और म्यांमार से दालों के आयात के लिए ऐसे समझौते किए जा चुके हैं।

दालों के आयात के लिए सरकार ने अरहर, उड़द और मसूर पर आयात शुल्क 31 मार्च 2025 तक माफ कर दिया है। हाल ही में सरकार ने चने के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होने वाली पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को दो महीने बढ़ाकर 30 जून 2024 तक कर दिया है। लेकिन दिक्कत यह है कि दालों के आयात के बावजूद उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत नहीं मिल रही है। इसलिए सरकार ने 15 अप्रैल से दालों के स्टॉक की निगरानी बढ़ा दी है।

दालों के आयात की मजबूरी को देश में दालों के घटते उत्पादन से जोड़कर देखा जा सकता है। कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि वर्ष 2023-24 में दालों का उत्पादन 234 लाख टन होगा, जबकि एक साल पहले देश में 261 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था। इस साल खरीफ सीजन में दालों का उत्पादन पिछले साल के 76.21 लाख टन से घटकर 71.18 लाख टन रहने का अनुमान है।

खरीफ में उड़द का उत्पादन पिछले साल के 17.68 लाख टन से घटकर 15.50 लाख टन रह जाएगा, जबकि खरीफ में मूंग का उत्पादन 17.18 लाख टन से घटकर 14.05 लाख टन रहने का अनुमान है।

देश की दालों के आयात पर निर्भरता इसलिए बढ़ी है क्योंकि पिछले दो-तीन सालों में दालों की बुआई और उत्पादन का रकबा बढ़ने के बजाय घटा है। 2021-22 में देश में दालों की बुआई का रकबा 307.31 लाख हेक्टेयर था जो 2023-24 में घटकर 257.85 लाख हेक्टेयर रह गया।

इसी तरह दालों का उत्पादन 2021-22 में 273 लाख टन तक पहुंच गया था, जो वर्ष 2023-24 में घटकर 234 लाख टन रहने का अनुमान है। दो वर्षों में दालों की खेती में 16 प्रतिशत तथा उत्पादन में 14 प्रतिशत की कमी आई है।

आश्चर्य की बात यह है कि यह घटना ऐसे समय में घटी जब सरकार दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर होने का दावा कर रही थी।

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