सुप्रीम कोर्ट और बिभव कुमार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 सितंबर) को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी सहयोगी बिभव कुमार को स्वाति मालीवाल मारपीट मामले में ज़मानत दे दी। कुमार करीब 100 दिनों से तिहाड़ जेल में बंद हैं। केजरीवाल के सहयोगी को इस साल 13 मई को मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास पर आप सांसद स्वाति मालीवाल पर कथित तौर पर हमला करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। उसे 18 मई को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने निर्देश दिया कि कुमार को केजरीवाल के निजी सहायक के रूप में बहाल नहीं किया जाएगा और न ही उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय में कोई आधिकारिक कार्यभार दिया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने सभी गवाहों की जांच होने तक कुमार के मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश पर भी रोक लगा दी।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद कुमार ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि मालीवाल पर कथित हमले से संबंधित मामले में बिभव कुमार की गिरफ्तारी जरूरी थी और ऐसा करते समय पुलिस ने कानून का सख्ती से पालन किया। उसे जमानत देने से इनकार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि आरोपी का “काफी प्रभाव” है और उसे राहत देने का कोई आधार नहीं बनता। उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाता है तो गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है या सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को बिभव कुमार पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पूछा था, “क्या इस तरह के गुंडे को सीएम के आवास में काम करना चाहिए?” पीठ ने कहा, “उन्होंने (बिभव कुमार) ऐसे काम किया जैसे कोई ‘गुंडा’ सीएम के आधिकारिक आवास में घुस आया हो।” पीठ ने अपनी तीखी टिप्पणी में कहा था, “हम स्तब्ध हैं? क्या एक युवा महिला से निपटने का यह तरीका है? उन्होंने (बिभव कुमार) उसके शारीरिक स्थिति के बारे में बताने के बाद भी उसके साथ मारपीट की।”
कुमार के खिलाफ 16 मई को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिनमें महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से उस पर आपराधिक धमकी, हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना तथा गैर इरादतन हत्या का प्रयास करने से संबंधित धाराएं शामिल थीं।